इस से पहले ज़ुलहिज्जा के प्रथम दस दिनों की अहमियत और फज़ीलत का बयान हो चूका है |
जिसमें हम ने यह जाना था कि यह दिन साल भर के तमाम दिनों में सबसे बेहतर और सबसे महान हैं |
और यह कि इन दिनों में किया जाने वाला अमल अल्लाह के नज़दीक सबसे ज़्यादा पसंदीदा, सबसे ज़्यादा पाकीज़ा और सबसे ज़्यादा अज्र व सवाब वाला है |
और यह भी कि इन दोनों समस्त प्रकार की इस्लामी इबादतें और नेकियां जमा हो जाती हैं जो कि इन दिनों की अद्वितीय विशेषताओं में से है |
अब आइए हम यह जानते हैं कि इन मुबारक दिनों के मसनून आमाल क्या है ? और वह कौन सी नेकियां है जिन्हें इन दिनों अंजाम देने के शरीअत में बाक़ायदा विशेष निर्देश दिए गए हैं |
तो इन दस दिनों में जो आमाल मसनून हैं और जिनके बारे में शरीअत में विशेष निर्देश आए और जिनका हम मुसलमानों को ख़ुसूसी एहतिमाम करना चाहिए, वह यह हैं |
ज़िक्रे इलाही अल्लाह का साथ, नज़दीकी और मुहब्बत हासिल करने का बेहतरीन ज़रिया है और इन दस दिनों में इसकी ख़ुसूसी ताकीद आई है, जैसाकि अल्लाह तआला का फ़रमान है:
"ويذكروا اسم الله في أيام معلومات"(سورة الحج:28)
“और इन निर्धारित दिनों में अल्लाह के नाम का ज़िक्र करो”|
अनेक मुफ़स्सेरीन के विचार में इन निर्धारित दिनों से मुराद ज़ुलहिज्जा के प्रथम दस दिन हैं |
मालूम हुआ कि इन दस दिनों में ज़िक्रे इलाही का ख़ुसूसी एहतिमाम करना चाहिए |
"...فأكثروا فيهن من التهليل والتكبير والتحميد"(مسند أحمد:6154)
“...तो तुम इन दिनों में तहलील यानी “ला इला ह इल्लल्लाह” तकबीर यानी “अल्लाहु अकबर” और तहमीद यानी “अलहमदु लिल्लाह” ज़्यादा से ज़्यादा पढ़ा करो"।
और हज़रत इब्ने उमर और हज़रत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हुमा के बारे में आता है कि वे इन दिनों में बाज़ार जाते और बुलंद आवाज़ से तकबीरें पढ़ते, और उन्हें देख कर दूसरे लोग भी तकबीरें पढ़ना शुरू कर देते”|
नोट: तकबीरात के मशहूर अलफ़ाज़ यह हैं:
-अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर कबीरा |
-अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर, ला इला ह इल्लल्लाह, वल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर, व लिल्लाहिलहम्द |
-अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर, ला इला ह इल्लल्लाह, वल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर, व लिल्लाहिलहम्द |
नोट: तकबीरें हर आदमी को व्यक्तिगत रूप से पढ़नी चाहिए, सामूहिक रूप से तकबीरें पढ़ना दुरुस्त नहीं है |
रोज़ा एक बेमिसाल अमल है और उसका सवाब बेहिसाब है, यह गुनाहों की माफ़ी और जहन्नम से आज़ादी का बहुत अहम ज़रिया है|
ज़ुलहिज्जा की १ तारीख़ से ९ तारीख़ तक पूरे नौ दिनों के रोज़े रखना मसनून है, चुनांचे हदीस में है कि:
"كان رسول الله صلى الله عليه وسلم يصوم تسع ذي الحجة..."(سنن أبو داود:2437)
यानी “रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ज़ुलहिज्जा के शुरू के नौ दिन रोज़ा रखते थे”|
और अरफ़ा के दिन यानी ज़ुलहिज्जा को रोज़ा रखने की ख़ुसूसी फज़ीलत आई है, चुनांचे नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का इरशाद है कि:
"صوم يوم عرفة أحتسب على الله أن يكفر السنة التي قبله والتي بعده."
यानी “अरफ़ा के दिन रोज़ा के बारे में मुझे अल्लाह से उम्मीद है कि वह पिछले (एक) साल और अगले (एक) साल के गुनाहों को मिटा देगा”|
नोट: अरफ़ा का रोज़ा हाजी के लिए मसनून नहीं नहीं है, क्योंकि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हज्जतुल वदा में अरफ़ा में ठहरे थे तो रोज़े की हालत में नहीं थे |
हज इस्लाम का एक अहम रुक्न है और उसकी ताक़त रखने वाले हर मुसलमान पर ज़िन्दगी में एक बार फ़र्ज़ है | यह ईमान और जिहाद के बाद सबसे अफ़ज़ल अमल है, इससे पिछले गुनाह माफ़ हो जाते हैं, यह ग़रीबी दूर करता और इसका बदला जन्नत है।
हज इन दिनों का ख़ास अमल है जो साल के बाक़ी दिनों में नहीं किया जा सकता, चुनांचे सुन्नत के मुताबिक़ ज़ुलहिज्जा की ८ तारीख़ से बाक़ाएदा हज की कार्यवाही शुरू हो जाती है, उस दिन हाजी मिना तशरीफ़ ले जाते हैं और वहां दिन का बाक़ी हिस्सा और ९ तारीख़ की रात गुज़ारते हैं और ज़ुहर, अस्र, मग़रिब, इशा और फ़ज्र की नमाज़ अदा करते हैं | फिर ९ तारीख़ को सुबह में अरफ़ा के लिए रवाना हो जाते हैं और वहां दिन भर ठहरते हैं | फिर १० तारीख़ की रात मुज़दलिफ़ा में गुज़रते हैं | फिर सुबह मिना आकर जमरतुल अक़बा को कंकरियां मारते हैं, क़ुर्बानी करते या करवाते हैं, सिर के बाल मुंडवाते या कटवाते हैं और फिर एहराम से हलाल होकर मक्का जाते हैं और तवाफ़े इफ़ाज़ा और सई करते हैं |
ईदुल अज़हा की नमाज़ जो कि वाजिब या सुन्नते मुअक्कदा और इस्लाम का एक अज़ीम शिआर है ज़ुलहिज्जा की १० तारीख़ को अदा की जाती है |
ज़ुलहिज्जा की दस तारीख़ को क़ुर्बानी की रस्म अदा की जाती है और यह क़ुर्बानी का पहला दिन है | क़ुर्बानी हर साल इसकी ताक़त रखने वाले हर मुस्लिम परिवार के लिए मसनून है | क़ुर्बानी अल्लाह की नज़दीकी हासिल करने का ज़रिया, सुन्नते इब्राहिमी की यादगार और नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सून्नते मुबारका है |
नोट: ज़ुलहिज्जा की १० तारीख़ के बारे में नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का इरशाद है:
"إن أول ما نبدأ به في يومنا هذا نصلي، ثم نرجع فننحر، من فعله فقد أصاب سنتنا..."(صحيح البخاري:5545)
“आज के दिन हम सबसे पहले (ईद की) नमाज़ पढ़ेंगे, फिर (ईदगाह से) वापस लौट कर कुर्बानी करेंगे, जिस आदमी ने ऐसा किया उसने हमारी सुन्नत को पा लिया”|
नोट: सलफ़ सालेहीन इन दस दिनों की बड़ी क़द्र किया करते थे | हज़रत सईद बिन जुबैर रहिमहुल्लाह के बारे में आता है कि वह इन दिनों नेक आमाल में ख़ूब मेहनत करते थे |
इसलिए हमें भी चाहिए कि इन मुबारक दिनों को ग़नीमत जानें, इस सुनहरे अवसर से लाभ उठाएं और इन मुहतरम दिनों में नेकियों के करने और गुनाहों से बचने का ख़ुसूसी एहतिराम करें |
अल्लाह हम सबको तौफ़ीक़ अता फ़रमाए |
................ जारी ..............
आप का भाई:
इफ्तिख़ार आलम मदनी
इस्लामिक गाइडेंस सेंटर
जुबैल सऊदी अरब
+966508750925

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